दरिद्रता एक ऐसा अभिश्राप है जिससे पीड़ीत मनुष्य का आज के समाज में कोई भी आदर-सत्कार नहीं करता, ठीक इसके विपरित धनवान एवं सामर्थवान् मनुष्य का सर्वत्र सम्मान होता है । इसलिये मनुष्य के जीवन में पर्याप्त धन का होना निश्चित रूप से अनिवार्य है । शास्त्रों ने भी चारों पुरुषार्थो में अर्थ को स्थान दिया है ।
अनादि काल से जो महासर्गशक्ति, स्थितिकाल में पालनशक्ति तथा संहारकाल में रुद्रशक्ति के रूप में तीनों लोकों में पूजी जाती हैं वह है मां दुर्गा । कहा जाता है कि मां दुर्गा के शाबर मंत्र का जप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं । यह चराचर जगत् जिनके मनोरंजन की सामग्री कही जाती है, परा, पश्यन्ती, मध्यमा एवं वैखरी वाणी के रूप में जो कण-कण में विराजमान रहती हैं । अगर कोई साधक सच्चे मं से इनकी शरण में जाता हैं तो माता उसके जीवन को धन धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं ।
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में ग्रहों की दशा जब विपरित स्थिति में हो, तब सोच विचारकर किया गया कार्य भी विपरित फल प्रदान करता है । अतः ऐसी विकट परिस्थिति में जैसे- व्यापार में हानि, शत्रुओं का कोप, नौकरी में रुकावट, कर्ज अथवा तंत्रबंधन आदि परेशानियां । इन सबसे आदिशक्ति मां दुर्गा का यह दिव्य लक्ष्मीकारक शाबरमंत्र अमृत के समान है । इस शाबर मंत्र को नवरात्रि काल, ग्रहणकाल या फिर समस्या अधिक बढ़ने पर कभी भी जप करके सिद्ध किया जा सकता हैं । इस मंत्र को सवालाख की संख्या में जप करने का शास्त्र में विधान बताया गया हैं । इसे किसी भी शक्ति करे मन्दिर या फिर एकान्त पवित्र स्थान में सम्पन्न करना चाहिए । जप पूरा होने के बाद इसका दशांश यज्ञ करके 9 वर्ष से छोटी कन्याओं को भोजन कराना चाहियें ।
मंत्र
ऊँ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंहवाहिनी बीसहस्ती भगवती रत्नमण्डित सोनन की माल ।
उत्तरपथ में आप बठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि । धनधान्य देहि-देहि कुरु-कुरु स्वाहा ।।
मां दुर्गा त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, और महेश की ही महाशक्ति कही जाती हैं । जो भी श्रद्धा पूर्वक भक्तवत्सला, करुणामयी, आद्यशक्ति मां जगदम्बा का धन वैभव की देवी माता महालक्ष्मीरूप में पूजन और आवाहन करते हुए में दुर्गा के इस शाबर मंत्र की जप साधना करता है उसे मां धनवान बना देती हैं । इस विधि से साधक घोर दरिद्रता एवं दुःखों से मुक्त होकर सुख-सम्पत्ति एवं दीर्घा यु प्राप्त करता है ।
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