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Monday, 3 September 2018

जन्माष्टमी पर जन्मोत्सव के समय इन महाआरती के लगाएं 56 भोग

श्रीकृष्ण जी की आरती

हिंदू धर्म में कृष्ण जी को भगवान श्री विष्णु जी का अवतार माना जाता है। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर एक बहुत ही अहम भूमिका निभाई थी। जन्माष्टमी के पावन पर्व पर इनकी विशेष पूजा आराधना की जाती है। श्रीकृष्ण जी की पूजा में श्रीकृष्ण चालीसा, मंत्र और आरती का विशेष प्रयोग किया जाता है। आज जन्माष्टमी के पावन पर्व पर योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव से पहले आरती बाल कृष्ण आरती की करें, बाद में दूसरे नंबर की भोग आरती कहते हुए नंदलाल को ५६ भोग लगाएं । फिर अंत में आरती कुंजबिहारी की करें और माखन मिश्री का भोग लगाकर सभी को प#साद बांटे ।

 

।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी मे इस आरती का बड़ा ही महत्व है ।।

 

आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जन्म सफल कर लीजै।
श्री यशोदा का परम दुलारा, बाबा के अँखियन का तारा।

गोपियन के प्राणन से प्यारा, इन पर प्राण न्योछावर कीजै।
आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जन्म सफल कर लीजै।

बलदाऊ के छोटे भैया, कनुआ कहि कहि बोले मैया।
परम मुदित मन लेत बलैया, अपना सरबस इनको दीजै।

आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जनम सफल कर लीजै।
श्री राधावर कृष्ण कन्हैया, ब्रज जन को नवनीत खवैया।

 

देखत ही मन लेत चुरैया, यह छवि नैनन में भरि लीजै।
आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जन्म सफल कर लीजै।

तोतली बोलन मधुर सुहावै, सखन संग खेलत सुख पावै।
सोई सुक्ति जो इनको ध्यावे, अब इनको अपना करि लीजै।

 

आरती बाल कृष्ण की कीजै, अपना जन्म सफल कर लीजै।

 

भोग आरती

आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन

भिलनी के बैर सुदामा के तंडुल
रूचि रूचि भोग लगाओ प्यारे मोहन

दुर्योधन को मेवा त्यागो
साग विदुर घर खायो प्यारे मोहन

जो कोई तुम्हारा भोग लगावे
सुख संपति घर आवे प्यारे मोहन

ऐसा भोग लगाओ प्यारे मोहन
सब अमृत हो जाये प्यारे मोहन

जो कोई ऐसा भोग को खावे
सो त्यारा हो जाये प्यारे मोहन

आरती कुंजबिहारी- की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली ।।


भ्र- मर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग
अतुल रति गोप कुमारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच
चरन छवि श्रीबनवारी- की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद
टेर सुन दीन भिखारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

आरती कुंजबिहारी- की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी- की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

समाप्त



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