धर्म में विश्वास और आस्था रख पूजा पाठ करने वाले बहुत सारे लोगों की शिकायत रहती है कि वे लंबे समय से पूरी श्रद्धा और गंभीरता से पूजा उपासना करने के बाद, दान इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद भी उनकी साधना को शायद ईश्वर स्वीकार ही नहीं कर रहे, जिससे सफलता के उचित परिणाम नहीं मिल रहे । इतनी पूजा पाठ के बाद भी बहुत सारी समस्याएं हे कि पीछा ही नहीं छोड़ती । इस प्रकार की शिकायत करने वाले कोई एक या दो नहीं बहुत सारे लोग मिल जाएंगे ।
ऐसा इसलिए होता है
पूजा के शुद्ध नियम
1- घर में पूजा स्थल घर की दक्षिण पश्चिम या पश्चिम दिशा में होने पर भी पूजा पाठ का लाभ प्राप्त नहीं होता । पूजा करते समय साधक का मुख प्रातःकाल पूर्व दिशा की ओर एवं शाम के समय पश्चिम की तरफ होना चाहिए ।
2- पूजा में हमेशा पीले या सफेद धुले हुए कपडों का ही प्रयोग करें । पूजा पाठ के अधिकतम फल के लिए तीन से चार बजे के मध्य का समय सर्वोत्तम रहता है इस समय की गई पूजा उपासना निष्फल नहीं होती ।
3- हमारे शास्त्रों में पूजा पाठ इत्यादि के लिए आसन का प्रावधान बताया गया है और आसन के बारें में विस्तार से चर्चा की गयी है । इसलिए साधक यह सुनिश्चित कर लें कि पूजा पाठ के समय उचित और साफ धुले आसन का प्रयोग कर रहे हैं या नहीं । पूजा के समय यदि मंत्र पढ़ते है, लंबे पाठ आरती इत्यादि करते है परंतु आसन का प्रयोग नहीं करते तो साधक की पूजा का पृथ्वीकरण हो जाएगा । पूजा के फलस्वरूप पैदा हुई ऊर्जा आसन के अभाव में पृथ्वी में समा जाएगी, साधना के फल से वंचित हो जाएंगे ।
4- शास्त्रों में पूजा अर्चना को एकांत स्थान में करने का विधान बताया गया है क्योंकि यदि पूजा के समय यदि कोई छू देता है तो भी पूजा के फलस्वरूप पैदा हुई ऊर्जा का पृथ्वीकरण हो जायेगा, जिसे सामान्य भाषा में हम कहते कि अर्थिन्ग हो रहीं है ।
5- पूजा के बाद यदि कोई क्रोध करता है, सो जाता है, निंदा करता है तो भी पूजा का फल पूजा करने वाले को प्राप्त नहीं होता । इसलिए इन बातों से बचने का प्रयास करें ।
6- भूलकर भी पूजा उपासना चारपाई पर बैठ कर न करें, नंगे फर्श पर न बैठें, यदि आसन मिलना सम्भव न हो तो उनी कम्बल प्रयोग कर सकते हैं, कहने का अभिप्राय है कि पूजा के समय पृथ्वी के संपर्क में सीधे आने से बचें ।
7- यदि किसी व्यक्ति ने अनुपयुक्त रत्न पहना होगा तो भी पूजा पाठ का लाभ नहीं मिलता । जैसे कि छिद्र युक्त घड़े में पानी डाला जाए ।
8- यदि किसी परिवार में किसी अविवाहित सदस्य की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसे अतृप्त आत्मा माना जाता है और अतृप्त आत्मा अपनी मुक्ति के लिए बाधाएं पैदा करती है । पूजा पाठ का लाभ न प्राप्त होने पर इस बिन्दु पर भी ध्यान दें कि आपके परिवार में कहीं इस प्रकार की कोई घटना घटित तो नहीं हुई है यदि ऐसा हुआ है तो उस अतृप्त आत्मा की मुक्ति के लिए शास्त्रों में बताए गए नियमों में निहित विधियों का पालन करें ।
9- किसी नए मकान में रहने के लिए आएं है तो सुनिश्चित कर ले कि आपने अपना घर किसी नि:संतान व्यक्ति से तो नहीं खरीदा है । बहुत बार देखा गया है कि पितृ दोष के फलस्वरूप व्यक्ति नि:संतान रहता है और उससे प्राप्त हुई वस्तु भी दोष ग्रस्त हो सकती है ।
10- पूजा पाठ हमेशा घर के किसी एंकात स्थान में करना चाहिए जहां पर आसानी से दूसरों की दृष्टि नहीं पड़े । यदि घर में प्रवेश होते ही पूजा स्थल पर सबकी दृष्टि पड़ती है, अर्थात पूजा स्थल छिपा नहीं है तो भी पूजा पाठ का लाभ नहीं मिलता । सीढी के नीचे भी पूजा गृह अच्छा नहीं माना जाता ।
11- मंत्र हमारे ऋषि मुनियों द्वारा अविष्कृत बहुत ही वैज्ञानिक ध्वनियाँ है । मंत्र जप से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है । यदि आप नियमित पूजा में मंत्र जप करते है तो ध्यान रखें कि मंत्र उच्चारण शुद्ध हो अन्यथा पूजा निरर्थक ही होगी । एक अक्षर की गलती आपको मन्त्र से होने वाले लाभ से वंचित रख सकती है । कभी कभी मन्त्र का उच्चारण गलत होने से नुक्सान होता भी देखा गया है । एक एक अक्षर से मन्त्र बनता है यदि कहीं त्रुटी हो तो मन्त्र के किसी जानकार से सही उच्चारण करना सिखता हैं ।
12- अगर कोई शास्त्र अनुसार नियमित पूजा पाठ करता हैं तो उसे खानपान में भी शुद्धता रहनी चाहिए । अगर साधक के परिवार को कोई सदस्य मांस-मदिरा का सेवन करता है तो भी पूजा का पूरा फल साधक को नहीं मिल पाता ।
13- यदि साधक चाहता हैं कि पूजा का फल पूरा मिले तो, सप्ताह में एक बार मौन व्रत जरूर रखें । मौन व्रत रखने से अध्यात्म बल बढ़ता है, सहन शक्ति का विकास होता है ।
14- आगर कोई किसी मंत्र का निरंतर और लम्बे समय तक जपता है तो उस साधक के शरीर के आस पास एक दिव्य आभामंडल बन जाता है, जिसे केवल कोई सिद्ध पुरुष ही देख पाते हैं, वह आभामंडल साधक की अनेक प्रकार से रक्षा करता है ।
15- यदि साधक के घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो ऐसे में घर में पूजा न करके किसी मंदिर में पूजा कर सकते हैं ।
16- अपनी पूजा का आसन, जप करने की माला और पूजा के कपड़े किसी दूसरे को हाथ नहीं लगाने दे ।
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