अब तक गठिया को बुढ़ापे का रोग कहा जाता था लेकिन अब इसकी जद में बच्चे और किशोर भी आने लगे हैं। भले ही इसके लिए बदलती हुई जीवनशैली को जिम्मेदार माना जाए या खानपान को। लेकिन सच्चाई यही है कि युवा गठिया यानी आर्थराइटिस के ज्यादा शिकार हो रहे हैं।
जुवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटिस
किशोरों में गठिया को जुवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटिस (जेआरए) कहते हैं। इससे 5 साल के बच्चे से 17 साल तक के किशोर प्रभावित होते हैं। हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली बाहरी तत्वों जैसे फंगस, बैक्टीरिया या वायरल से लडऩे के लिए सेल्स बनाती है, ये बाहरी तत्वों को नष्ट कर हमें स्वस्थ रखते हैं। लेकिन जेआरए की स्थिति में बॉडी के ये सेल जोइंट्स सेल को भी बाहरी तत्व समझकर निष्क्रिय कर देते हैं जिससे गठिया की बीमारी हो जाती है।
प्रारंभिक लक्षण
जोड़ों में सूजन, जलन, दर्द , शरीर पर रैशेज, तेज बुखार और चलने फिरने में दिक्कत, कलाई या घुटनों को मोडऩे में परेशानी इसके प्रमुख लक्षण हैं। अनुवांशिक कारणों से भी यह समस्या हो सकती है। कई बार माता-पिता बच्चों के जोड़ों में जकडऩ की समस्या को मौसमी बदलाव समझकर नजरअंदाज कर देते हैं ऐसा न करें और बच्चे की समस्या पर गौर करें।
इलाज
जरूरी है कि जल्द से जल्द इस रोग की पहचान कर बच्चे का इलाज शुरू कर दिया जाए।
स्टेरॉयड रहित दवाइयां: प्रारंभिक स्तर पर उपचार के लिए सूजन कम करने वाली स्टेरॉयड रहित दवाइयां दी जाती हैं। ये दवाइयां जेआरए की शुरुआती अवस्था में ही उस पर रोक लगा देती हैं।
एंटी-रूमेटिक दवाइयां: रोग को फैलने व बढऩे से रोकने के लिए एंटी-रूमेटिक दवाइयां दी जाती हैं जो जोड़ों की जकडऩ, सूजन और दर्द से राहत दिलाती हैं।
रिप्लेसमेंट: गंभीर गठिया के रोगियों को एंटीबॉडीज और कृत्रिम प्रोटीन से बनाए जाने वाले बायोलॉजिक्स दिए जाते हैं, लेकिन सभी दवाइयां बेअसर होने पर जोड़ या हड्डी के रिप्लेसमेंट के अलावा कोई उपचार नहीं बचता।
खेलकूद
आर्थराइटिस की समस्या में अगर धीरे-धीरे नियंत्रण हो रहा है तो अपनी एक्टिविटीज तो बढ़ाएं मगर क्रिकेट, फुटबॉल, कुश्ती, कबड्डी जैसे खेल न खेलें। एक स्वस्थ बच्चे को इंडोरगेम यानी घर के अंदर रहते हुए गेम खेलने की बजाय आउटडेार गेम जरूर खेलने चाहिए क्योंकि इससे शरीर एक्टिव बना रहता है।
बैलेंस डाइट जरूरी
आर्थराइटिस में वैसे तो बच्चों को खाने की कोई मनाही नहीं होती लेकिन इन बच्चों के आहार में प्रोटीन और कैल्शियम जरूर होना चाहिए। आमतौर पर सामान्य बच्चों को भी बैलेंस डाइट लेनी चाहिए ताकि बढ़ती उम्र में संपूर्ण विकास हो।
इनसे बचें
जो बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं, वे भी कम्प्यूटर, टीवी या वीडियो गेम पर घंटों बैठे न रहें। हरी सब्जियां जरूर खाएं और बर्गर, पिज्जा जैसे जंक फूड से दूर ही रहें।
डॉ.आशीष.के.शर्मा, ऑर्थोपेडिक कंसल्टेंट, दुर्लभजी अस्पताल
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