यूनानी पद्धति में औषधियां वनस्पति व प्राकृतिक खनिजों पर आधारित होती हैं। पुराने समय में इन दवाओं को कच्चे रूप में प्रयोग किया जाता था लेकिन अब इनका प्रयोग कंपाउंड रूप में होता है। यूनानी औषधियां विभिन्न तरह से प्रयोग में लाई जाती है।
पानी के साथ : जोशांदा दवा को पानी में उबालकर, ठंडा करके जुकाम में देते हैं। वहीं खिसांदा को पानी में भिगोकर मलछानकर (मिश्रण बनाना) खून को साफ करने व त्वचा रोगों में प्रयोग करते हैं। ऐसे ही कुछ शर्बत पानी में मिलाकर दिए जाते हैं।
शहद का इस्तेमाल : माजून, जवारिश व इत्रिफल दवाएं शहद को आधार बनाकर तैयार की जाती हैं। माजून दवा को बारीक पीसकर तंत्रिका तंत्र संबंधी रोगों में और जवारिश को थोड़ा दरदरा कूटकर शहद में मिलाकर पेट की समस्याओं में देते हैं। इत्रिफल को घी में मिलाने के बाद फिर शहद में मिलाकर तैयार किया जाता है।
गोलियां : इम्युनिटी बढ़ाने, बीमारी के बाद की कमजोरी दूर करने, ताकत व स्फूर्ति के लिए खमीरा दवा देते हैं। दवा को घोंटकर इसमें खमीर बनने के बाद प्रयोग किया जाता है। दवाओं को बारीक पीसकर किसी गोंद या पानी में मिलाकर हब (गोलियां) तैयार की जाती हंै। चपटी गोलियां यानी कुर्स का प्रयोग होता है।
पाउडर : अंदरुनी रोगों को दूर करने के लिए पाउडर के रूप में प्रयुक्त दवाओं को सुफूफ कहते हैं। कुछ दवाओं को कूश्ता यानी कूजे (मिट्टी का प्याला) में गीले हिकमत करके (मिट्टी में लपेटकर) कंडों की आंच में पकाने के बाद गोली या पाउडर के रूप में दिया जाता है। बाहरी चोट या घाव पर पाउडर लगाया जाता है, जिसे ‘जरूर’ कहते हैं। दांत के लिए ‘सनून’ मंजन दिया जाता है। दिमाग व नाक से जुड़े रोगों में भी पाउडर का ही प्रयोग किया जाता है।
तेल के रूप में : तिल, बादाम आदि के तेल से तैयार जिमाद, तिला, कैरूती व मरहम यानी मोम के साथ दवाओं में मिलाकर प्रयोग करते हैं। कुछ औषधियों के पत्तों के रस का इस्तेमाल लिवर रोगों, सूजन व हेपेटाइटिस में किया जाता है।
चीनी से बनी : कई दवाएंं चीनी या शहद पर आधारित होती हैं जैसे माजून, जवारिश आदि। इन्हें बच्चों को भी दिया जाता है।
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