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Thursday 23 August 2018

देव पूजन के पूर्व इन पाँच उपचारों के साथ करें कलश भगवान की स्थापना

कलश को सभी देव शक्तियों, तीर्थों आदि का संयुक्त प्रतीक मानकर, उसे स्थापित- पूजित किया जाता है, और कलश को यह गौरव मिला उसकी धारण करने की क्षमता- पात्रता के कारण । कलश की स्थापना और पूजा लगभग प्रत्येक पूजा के कर्मकाण्ड में की जाती है । सामान्य रूप से कलश पहले से तैयार रखा रहता है और पूजन क्रम में उसका पूजन स्थापना किया जाता है । शास्त्रनुसार कलश स्थापना से पहले पाँच उपचार पूजन कराये जाते हैं और इनके पूर्ण होने पर ही कलश की प्राण स्थापना मानी जाती हैं । यह कलश स्थापन, प्राण प्रतिष्ठा, गृह प्रवेश, गृह शान्ति, अन्य घरेलु लघु यज्ञ,क नवरात्र पर्व जैसे आयोजनों में भी जोड़ा जा सकता हैं । बड़े-बड़े यज्ञों में देव पूजन के पहले मुख्य कलश अथवा पंच वेदिकाओं के पाँचों कलशों पर एक साथ इन उपचारों केस साथ स्थापना की जाती हैं ।

 

कलश के पात्र में पवित्र जल भरा जाता हैं, श्रद्धा और पवित्रता से भरी- पूरी पात्रता ही धन्य होती है । उसमें मगंल द्रव्य डालते हैं जो पात्रता को मंगलमय गुणों से विभूषित किया जाना चाहिए दर्शाता हैं । कलश के गले में कलावा बाँधने का अर्थ है- पात्रता को आदर्शवादिता से अनुबन्धित करना । नारियल- श्रीफल, सुख- सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है । उसकी स्थापना का तात्पर्य है कि ऐसी व्यवस्थित पात्रता पर ही सुख- सौभाग्य स्थिर रहते हैं ।

 

कलश स्थापना के लिए सामग्री

 

कलश स्थापना के लिए तांबे, कासा या मिट्टी का कलश, उसके नीचे रखने का घेरा (ईडली), अलग पात्र में शुद्ध जल, कलावा, मंगल द्रव्य, नारियल पहले से एकत्रित कर लें ।


पाँच उपचार पूजन


पाँचों उपचार एक- एक करके मन्त्रों के साथ सम्पन्न करें, और उनके अनुरूप भावना भी बनाये रखें ।

 

1- घटस्थापन
मन्त्रोंच्चार के साथ कलश को निर्धारित स्थान या चौकी आदि पर स्थापित करें । भावना करें कि अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र की पात्रता ईश्वर के चरणों में स्थापित कर रहे हैं ।


मंत्र
ॐ आजिग्घ्र कलशं मह्या, त्वा विशन्त्विन्दवः ।
पुनरूर्जा निवर्त्तस्व, सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा, पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः ।।


2- जलपूरण
मन्त्रोच्चार के साथ सावधानी से शुद्ध जल कलश में भरें । भावना करें कि समर्पित पात्रता का खालीपन श्रद्धा- संवेदना से, तरलता- सरलता से लबालब भर रहा है ।


मंत्र
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि, वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो,
वरुणस्यऽऋतसदन्यसि, वरुणस्यऽऋत सदनमसि, वरुणस्यऽऋतसदनमासीद ॥


3- मंगल द्रव्य स्थापन
मन्त्र के साथ कलश में दूर्वा- कुश, पूगीफल- सुपारी, पुष्प और पल्लव डालें । भावना करें कि स्थान और व्यक्तित्व में छिपी पात्रता में दूर्वा जैसे जीवनी शक्ति, कुश जैसी प्रखरता, सुपारी जैसी गुणयुक्त स्थिरता, पुष्प जैसा उल्लास तथा पल्लवों जैसी सरलता, सादगी का संचार किया जा रहा है ।

 

मंत्र
ॐ त्वां गन्धर्वाऽअखनँस्त्वाम्, इन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः ।
त्वामोषधे सोमो राजा, विद्वान्यक्ष्मादमुच्यत ॥

 

4- सूत्रवेष्टन
मन्त्र के साथ कलश में कलावा लपेटें । भावना करें कि पात्रता को अवाञ्छनीयता से जुड़ने का अवसर न देकर उसे आदर्शवादिता के साथ अनुबन्धित कर रहे हैं, ईश अनुशासन में बाँध रहे हैं ।


मंत्र
ॐ सुजातो ज्योतिषा सह, शर्मवरूथ माऽसदत्स्वः ।
वासोऽ अग्ने विश्वरूप œ, सं व्ययस्व विभावसो ॥

 

5- नारियल संस्थापन
मन्त्र के साथ कलश के ऊपर नारियल रखें । भावना करें कि इष्ट के चरणों में समर्पित पात्रता सुख- सौभाग्य की आधार बन रही है । यह दिव्य कलश जहाँ स्थापित हुआ है, वहाँ की जड़- चेतना सारी पात्रता इन्हीं संस्कारों से भर रही है ।


मंत्र
ॐ याः फलिनीर्या ऽ अफलाऽ, अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः ।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता, नो मुञ्चन्त्व œ हसः ।।


तत्पश्चात् ॐ मनोजूतिर्जुषताम् ० मन्त्र से (दोनों हाथ लगाकर) प्रतिष्ठा करें । बाद में तत्त्वायामि ० मन्त्र का प्रयोग करते हुए पंचोपचार पूजन करें और कलशस्य मुखे विष्णुः० इत्यादि मन्त्रों से प्रार्थना करें । इस प्रकार कलश स्तापन का क्रम परा हो जाता हैं ।

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