***** धर्म में प्रायः शादी विवाह करने से पूर्व वर-वधु या लड़के-लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता है, और इस मिलान के बाद ही तय होता है की लड़का और लड़की की कुंडली विवाह के उपयुक्त है या नहीं । अगर अधिक गुण मिलते है तो विवाह उत्तम माना जाता है । वहीं अगर दोनों में से किसी एक की कुंडली में भी थोड़ी बहुत ऊँच नीच हो तो अधिकतर संबध हो नहीं पाते । लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किन्हीं कुंडलियों में कुछ गरबड़ दिखे तो उसे कुछ उपायों से ठीक करके विवाह संबंध करने में से कोई परेशानी नहीं होती । कुंडली मिलान करते समय इन बातों का ध्यान जरूर रखे ।
1- मंगल दोष- ज्योतिष के अनुसार कुंडली मिलान में मुख्य रूप से मंगल दोष पर खास विचार किया जाता है । अगर जन्म कुंडली में प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में मंगल हो तो कुंडली में मंगल दोष माना जाता है ।
2- ऐसी कुंडली से बचे- किसी कुंडली में लग्न, चंद्र और कभी-कभी शुक्र की राशि से भी मंगल की उपरोक्त स्थितियों का विचार किया जाता है । मंगल दोष युक्त अथवा शनि दोष युक्त कुंडली ही विवाह संबंध के लिए सही मानी जाती है । इसलिए इन बातों का जरुर ध्यान रखें ।
3- सामान्य कुंडली- यदि मंगल अपनी उच्च राशि मकर में, स्वराशि मेष या वृश्चिक में या मित्र सूर्य की राशि सिंह में, गुरु की राशि धनु या मीन में से किसी भी राशि में स्थित हो तो वह अधिक दोषकारक नहीं होता है । यदि मंगल का गुरु पूर्ण दृष्टि 5, 7, 9 वीं से देखता हो तो भी मंगलदोष नष्ट हो जाता है ।
4-दुष्प्रभाव- जन्म कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और द्वादश भाव में स्थित मंगल के सप्तम स्थान पर पूर्ण दृष्टि व् स्थिति होने के कारण वह अधिक दुष्प्रभाव करता है लेकिन वस्तुतः मंगल दोष का अर्थ क्या है? सप्तम स्थान प्रजनन-अवयव और दाम्पत्य कामोपभोग का निर्देशक स्थान है ।
5- सुख में बाधक- अष्टम स्थान जीवनसाथी यानी की पति-पत्नी का कुटुंब स्थान है । उस पर प्रथम या द्वितीय भाव में मंगल की यह दृष्टि का पड़ना कुटुंब सुख में बाधक बनता है । किन्तु उस पर गुरु की दृष्टि या युति से यह दोष नष्ट हो जाता है ।
ऐसे समझे दोनों की कुंडली
1 - वर-वधु की कुंडली का मिलान 10 प्रकार से किया जाता है और हर प्रकार का अपना-अपना महत्व है । सिर्फ मांगलिक देखकर ही विवाह तय नहीं किया जाता । अन्य ग्रहों की चाल, दृष्टि, समय और ऊँच-नीच भी देखा जाता है ।
2 - मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है जबकि बुध पृथ्वी तत्व का, इसलिए इनका मेल नहीं हो सकता । किन्तु मंगल, सूर्य और मंगल, गुरु में अच्छा मेल रहता है । मंगल और शनि का मेल नहीं बैठता । यदि एक कुंडली में महा दरिद्र योग है तो उसके योग्य संबंध होने से लाभ की बजाय हानि ही होती है ।
3 - कुंडली मिलान का विचार करते समय वर-वधु दोनों की कुंडलियों के लग्न के स्वामी और चंद्र राशि के स्वामी परस्पर मित्र होने पर भी षडाष्टक योग या द्विदार्दाश योग नहीं होना चाहिए । एक कुंडली में संतान योग और दूसरी कुंडली में वन्ध्यत्व योग हो तो उसका परस्पर विवाह नहीं करना चाहिए । एवं एक में उत्साह, चैतन्य और दुसरे में जड़ता, दरिद्र होने से वह संबंध भी वर्जित होना चाहिए ।
4 - अगर वर-वधु सिंह और कुंभ राशि में हो तो कभी मेल नहीं हो सकता । भले ही इन राशि वाली कुंडलियों के ग्रह असामान्य रूप से अच्छे ही क्यों न हो, अतः उनकी कुंडलियों के द्वादश भाव का सम्पूर्ण विचार किये बिना विवाह संबंध की राय नहीं देनी चाहिए ।
5 - कुंडली मिलान जरुरी होता है आजकल की सामाजिक व्यवस्था में अनेक वैवाहिक दम्पत्तियों के संबंध सही नहीं होते और अंततः विवाह विच्छेद तक पहुँच जाता है । ऐसी दुखद घटनाओं को रोकने के लिए सिर्फ नाड़ी दोष या मंगल दोष का विचार कर लेने से कुंडली के अन्य दोष दूर नहीं होते । इसीलिए विवाह पूर्व कुंडली का मिलान अलग-अलग तरीकों से करके ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए । अगर ग्रह की स्थिति थोड़ी ऊपर नीचे हो तो उसका भी उपाय किया जा सकता है ।
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