शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग सिर को गर्दन न केवल सहारा देेती है बल्कि अपने लचीलेपन के कारण उसको इधर-उधर घुमाने में मदद भी करती है। रीढ़ की हडडी के 32 वर्टिब्रा या कशेरुकाओं में से पहले सात वर्टिब्रा को सर्वाइकल वर्टिब्रा के नाम से जाना जाता है। इन्हीं कशेरुकाओं के बीच से एक प्रकार की नसों का समूह गुजरता है और उसके द्वारा दिमाग का संदेश पूरे शरीर के अंगों को पहुंचाया जाता है। इसे स्पाइनल कोर्ड के नाम से जाना जाता है। इसी से शरीर की गतियां संचालित होती हैं। ग्रीक सभ्यता के अनुसार संपूर्ण पृथ्वी का भार एटलस नामक देवता उठाता है। उसी तरह सिर का भार उठाने के कारण प्रथम मनके को एटलस नाम दिया गया है। एटलस व एक्सिज प्रथम दो ऐसे मनके हैं जो सिर के भार को झेलने के साथ-साथ गर्दन की कई गतिविधियों के संचालन में भी अहम योगदान देते हैं।
वर्टिब्रा में बदलाव
उम्र के बढ़ने के साथ-साथ शरीर के बाकी अंगों की तरह ये वर्टिब्रा वियर एवं टियर के कारण घिसते जाते हैं। सर्वाइकल क्षेत्र में जब ये वर्टिब्रा प्रभावित होते हैं तो उससे उत्पन्न होने वाली अवस्था को सर्वाइकल स्पोंडोलाइसिस के नाम से जाना जाता है। वर्टिब्रा घिसने पर उनके बीच में जो कुशन होते हैं वो भी घिस जाते हैं। हड्डियां कमजोर होकर नुकीली हो जाती हैं।
क्यों होता है दर्द
काम का अधिक तनाव, मोटापा, बढ़ती उम्र या उठने-बैठने का गलत तरीका सर्वाइकल स्पोंडोलाइसिस के रूप में सामने आता है। पहले यह समस्या 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को ही होती थी लेकिन अब खराब दिनचर्या के कारण कम उम्र के लोग भी इस रोग की गिरफ्त में आने लगे हैं। आयु के प्रभाव से ही जब डिसक में कोई क्रेक आ जाए या फिर बाहर की ओर उभार आए तो उस वजह से भी रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है जिससे इस प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं। उम्र बढऩे के साथ-साथ गर्दन की अस्थियों को जोडऩे वाले लिगामेंट कड़े हो जाते हैं, जिससे गर्दन की गतिशीलता में रुकावट आती है और दर्द बढ़ने लगता है।
दर्द कब ज्यादा बढ़ता है
अधिक देर खड़े होने, ज्यादा बैठे रहना, रात के समय छींकने, जोर से हंसने, खांसने, अधिक चलने या फिर गर्दन को पीछे की ओर घुमाने पर दर्द बढ़ जाता है।
ऐसे पहचानें रोग को
गर्दन का दर्द या उसकी जकडऩ, सिरदर्द के साथ चक्कर आना, कंधे में दर्द व गर्दन को दाएं-बाएं घुमाने में दर्द का बढऩा सर्वाइकल स्पोंडोलाइसिस के लक्षण हैं। इस दर्द के कारण रोगी को न केवल उठने- बैठने बल्कि चलने-फिरने में भी दिक्कत होती है। हाथ, पांव, टांगें-बाजू आदि सुन्न होना और गर्दन से ज्यादा काम लेने पर दर्द अधिक बढ़ जाता है। इस रोग में सिरदर्द गर्दन से शुरू होकर सिर के ऊपर तक जाता है।
परेशानी में क्या करें
समतल बिस्तर का प्रयोग करें। सिर को दाएंं से बाएं व बाएं से दाएं गोलाकार रूप में घुमाने से इस रोग में लाभ मिलता है। सीधे खड़े होकर दोनों कंधों को सामने से पीछे की ओर गोलाकार घुमाने से लाभ होता है। प्राणायाम व ध्यान लगाने से तनाव कम होता है। पद्मासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, शवासन का प्रयोग श्रेष्ठ फलदायी है। नाक में दो-दो बूंद गाय का घी डालना उपयोगी होता है। अस्थि रोगों को दूर करने में गिलोय, नागरमोथा का प्रयोग करें। चरक संहिता के अनुसार इस रोग में शिलाजीत व दूध के साथ गुग्गल फायदेमंद होता है। केवल दूध को डाइट में शामिल करते हुए च्यवनप्राश खाने से भी लाभ होता है।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal http://bit.ly/2EAnOWG
No comments:
Post a Comment