नकली दांत लगवाने से पहले इनका ध्यान रखें
कई बार जेनेटिक विकृति (आनुवांशिक) या रेयर डिजीज के कारण कुछ लोगों में जन्म से ही मुंह में एक भी दांत नहीं होता है। हालांकि यह समस्या बहुत कम मरीजों में देखने में आती है लेकिन जिन्हें यह समस्या होती है, उनकी आम दिनचर्या में परेशानी बढ़ जाती है। वैसे इस स्थिति से ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेडिकल साइंस ने इसका भी इलाज उपलब्ध करवा दिया है। आमतौर पर ऐसे मरीजों को नकली दांत या डेंचर लगाने की सलाह दी जाती है लेकिन अब इम्पलांट के जरिये उनकी समस्या का काफी हद तक स्थायी समाधान हो सकता है। बस करना यह है कि किसी उचित डिग्रीधारक दंत चिकित्सक से इलाज लें, किसी नुस्खे या सस्ते इलाज के चक्कर में न पड़ें। अब तो सरकारी डेंटल कॉलेजों में भी इसका इलाज होने लगा है।
ऐसे फिक्स किए जाते हैं नकली दांत
अब जन्म से एक भी दांत नहीं है तो सवाल उठता है कि किस उम्र में डॉक्टर के पास जाएं और उनके कितने नए दांत लग लग सकते हैं। डेंटल सर्जन्स का कहना है कि वैसे तो जल्द से जल्द डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए लेकिन 20-21 साल की उम्र के मरीजों में भी जरूरी जांचों के बाद दांत लगाए जा सकते हैं। यह इलाज उन मरीजों में भी हो सकता है जिनके जन्म से मुंह में नीचे की तरफ एक भी दांत नहीं है और ऊपर की तरफ सिर्फ दो ही दांत हैं। इसमें इलाज थोड़ा लंबा चलता है क्योंकि शुरुआती परीक्षण से लेकर सर्जरी प्लान करने में कई तरह की जांचों आदि की जरूरत होती है।
इन जांचों से पता चलता है कितने दांत लग सकते हैं
सबसे पहले डेंटल सर्जन मरीज के मुंह की जांच करते हैं और उसकी अंदरूनी संरचना का विशेष पदार्थ से बने सांचे से नाप लेते हैं। इसके जबड़े , तालु व अंदर की हड्डी आदि की सही स्थिति समझ में आती है। एक्सरे आदि भी करवाते हैं जिसमें थ्री डी सीटी स्कैन से मुंह के अंदर की बनावट स्पष्ट दिखाई दे जाती है। इन सबको देखने के बाद डॉक्टर मरीज के मुंह में इंप्लांट लगाते हैं जिनपर फिक्स नकली दांत लग जाते हैं। इम्पलांट व नकली दांत कितने लग सकते हैं इसका निर्धारण अलग-अलग मरीज में भिन्न हो सकता है क्योंकि यह उसके मुंह की अंदरूनी बनावट व हड्डी-जबड़े की स्थिति पर निर्भर करता है। एक बार फिक्स नकली दांत लग जाते हैं तो मरीज आराम से खाना खा व चबाने वाली चीजें ले सकता है। हालांकि ज्यादा सख्त चीजें खाने से बचने की सलाह दी जाती है। इन नकली दांतों के साथ भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना होता है और नियमित रूप से ब्रश करना चाहिए। नशे व धूम्रपान-तंबाकू से भी दूरी रखनी चाहिए।
ऐसे बनते हैं नकली दांत
जिन लोगों के असली दांत खराब हो जाते हैं उनके लिए इलाज के तौर पर कृत्रिम दांत लगाने का विकल्प भी है। ऐसे लोग जिनके मुंह में एक भी दांत नहीं है, उनके लिए बत्तीसी यानी कृत्रिम दांत डेंटल सर्जन बनाते और लगाते हैं। इसके एक्सपर्ट प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग से होते हैं। बत्तीसी मुंह में चिपकाने वाली भी हो सकती है और इम्पलांट से स्थायी रूप से लगाने वाली भी। कई बार कैंसर के मरीजों में सर्जरी के बाद तालु, आंख, नाक हटाने पड़ जाते हैं तब इन मरीजों के लिए भी बत्तीसी बनाकर लगाई जाती है। साथ में ऐसे मरीजों के चेहरे को भी नया रूप देने के लिए आंख, नाक, कान भी बनाकर लगाए जाते हैं। लेकिन बत्तीसी उन्ंही मरीजों में लगाई जाती है जिनके सारे दांत खराब हो या गिर चुके हों। इसमें पहले मरीज के मुंह की अंदरुनी बनावट का नाप लिया जाता है ताकि उसके मुंह खुलने-बंद होते वक्त दांतों की स्थिति का सही अंदाजा लगाया जा सके। इस नाप के आधार पर एक अस्थायी मॉडल बनाया जाता है जिसे मरीज के मुंह में लगाकर देखा जाता है कि यह सही ढंग से फिट हो रहा है या नहीं। मुंह खुलने व बंद होने के मूवमेंट और जबड़े का नाप एक विशेष प्रकार की मशीन पर लिया जाता है। ऐसे मरीज जिनके मुंह में एक भी दांत नहीं हैं तो उनके अंदर की हड्डी में इम्पलांट फिक्स करके फिक्स दांत या बत्तीसी लगा देते हैं। जिन मरीजों में सिर्फ एक-दो नकली दांत ही लगाने होते हैं तो उनके मुंह में इम्पलांट की मदद से इन्हें फिक्स कर दिया जाता है। नकली दांत सिरामिक्स व अन्य विशिष्ट पदार्थों से बने होते हैं।
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